गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

ये चौथा खम्बा क्या है भाई ? और आया कहाँ से ?
भारतीय संविधान के अनुसार सरकार के तीन स्तम्भ हैं कार्यपालिका, न्यायपालिका व विधायिका ! पर मीडिया ने इन तीन स्तंभों के बीच मीडिया ने नारद मुनि की तरह ऐसी सेंध लगाईं कि मीडिया बन गया चौथा स्तम्भ जिसे लोग चौथा खम्बा कहलाना बेहतर समझते हैं ! समझ में नहीं आया यह चौथा खम्बा कहाँ से और कैसे आया ? इस खम्बे ने सरकारों पर ऐसा कहर ढाया है कि सरकारें इसके प्रकोप से थर थर कांपती हैं ! इस चौथे खम्बे का कहर देखना है तो देखिये टेलीविज़न के छोटे परदे पर ! एक अदना सा एंकर छोटे परदे में शहंशाह बन, बड़े से बड़े नेता नेता की वाट लगा देता है ! जब वह किसी भी नेता को हड़काता है तो नेता जी की कैसी घिघ्घी बंध जाती है ! यह आपने भी महसूस किया होगा ! जब एंकर टेलीविज़न पर अपना जलवा दिखाते हैं तो लगता है जैसे संसार के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति वह ही हों, जैसे सारी ईमानदारी और निष्पक्ष होने का ठेका उन्होंने ही लिया हो ! सरकारों को राज काज चलाने की ट्रेनिंग वह ऐसे देते हैं जैसे पता नहीं कितनी सरकारें उन्होंने चलाई हों ! वह स्वयं को सर्वगुण संपन्न एवं सर्वश्रेष्ठ मानते हुए नेताओं के ऊपर ऐसे हावी होने का प्रयास करते हैं कि नेता जी बगलें भी नहीं झाँक पाते ! क्योंकि नेता जी स्वयं को एंकर से दोयम कैसे समझ सकते हैं ? एंकर नेताओं को तमीज सीखने की भी ट्रेनिंग देता है ! वह दुनियाँ के हर नेता को भ्रस्टाचारी एवं स्वयं को सदाचारी घोषित कर छोटे परदे के बाहुबली का बखूबी रोल निभाने मैं पटु होता है ! एंकरों की भी दो प्रजाति होती हैं ! पुरूष और महिला ! पुरुष को तो नेता किसी तरह झेल ही लेता है परन्तु महिला एंकर नेता जी की ऐसी घिग्घी बंधाती हैं कि नेता जी बगलें ही झांकते रह जाते हैं ! एंकरों की वाणी में अहंकार की तुलना कैसे करूं ? समझ लीजिये जैसे आसमान में बिजली चमकती है वैसे ही एंकर महोदय या महोदया की गर्जना अपनी चमक की धमक छोटे परदे पर यदा कदा दीखती रहती हैं ! नेता जी को उनका मुहं (माइक) बंद करने की धमकी इस चमक में उनका ब्रह्मास्त्र होता है ! इस अस्त्र के बाद तो नेताजी त्राहिमाम के तर्ज पर अपना मुहं ही सिल लेते है ! पर एंकर का सत्ता पक्ष के पेनलिस्ट की तरफ नजरिया कुछ भिन्न होता है ! उन्हें एंकरों की तरफ से कुछ सम्मान मिल जाता है ! पर टीवी स्टूडियो के बाहर एंकरों की की चमक-धमक काफी हद तक रफू चक्कर हो चुकी होती है ! विरोधी कब सत्ता पक्ष बन जाए क्या पता ? इस बात का वह बखूबी ध्यान रखते हुए चौथे खम्बे की धमक बरक़रार रखने का प्रयास करते दीखते हैं ! नेता या पेनालिस्ट्स की जवान पकड़ कर वह मुद्दा लपक लेते है ! कभी मुद्दा शराब है तो कभी गोस्त, कभी मुद्दा सांप है तो कभी चूहा ! एक बार हम भी इनके चक्कर में फंसे ! एक कार चल रही थी बिन ड्राईवर के और सुबह से शाम तक कर चलती रही ! देर शाम पर्दाफ़ाश हुवा कि पिछली सीट से वह कार चलाई जा रही थी ! किसी के थप्पड़ लगे या न लगे ! पर एंकर महोदय चिल्लायेंगे - तगड़ा लगा थप्पड़ नेता जी के गाल पर ! इसी बात पर कुछ पेनलिस्ट बैठाए जायेंगे ! और प्रश्न होगा - क्या किसी नेता को सरे बाजार महफ़िल में थप्पड़ लगाना वाजिब है, क्या थप्पड़ लगा कि नहीं ? धुंवाधार वाद विवाद चलता है और अंत में सभ्य समाज के इस पेनल में थप्पड़ को असभ्यता घोषित कर दिया जाता है ! और सबसे अंत में एंकर महोदय हर पेनलिस्ट को 30 सेकंड में, केवल 30 सेकंड में उत्तर देने का दादागिरी वाला फरमान सुनाते हैं और सारे नेता उसे हेडमास्टर का फरमान सुन अपनी बारी का इंतज़ार करते लगते है ! उसमें भी कभी कभी सबके बोलने से पहले चैनल बदल दी जाती है ! जिनको मौका मिलता है यदि वह विरोधी पक्ष का ही तो पेनलिस्ट महोदय कहेंगे झापड़ तो पड़ा ही नहीं, केवल प्रयास किया गया ! पर इस प्रयास की वह भर्त्सना करते हैं और सता पक्ष के नेता भी इसकी भर्त्सना करेंगे पर झापड़ पड़ा या नहीं इस मुद्दे को गोल कर जायेंगे और वाद विवाद का समापन हो जाएगा ! और कुछ पेनालिस्ट दूसरे चैनल में किसी अन्य विषय पर अपनी एक्सपर्ट राय देने हेतु प्रस्थान कर जायेंगे ! (This is a piece of humour !)

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