गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

क्या भारत बनेगा हिन्दू राष्ट्र ? क्या भारत बनेगा अखंड भारत ? Hindu Rashtr; Akhand Bharat



क्या भारत बनेगा हिन्दू राष्ट्र ? क्या भारत बनेगा अखंड भारत ?
मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान के बाद कल हिन्दू राष्ट्र के मुद्दे पर छोटे परदे पर जम कर चर्चा हो रही थी ! अनेक हिन्दू संघठन चाहते हैं की भारत एक हिंदू राष्ट्र हो ! प्रश्न है की क्या यह सम्भव है ? क्या भारत कभी हिन्दू राष्ट्र था ? क्या भारत कभी अखंड भारत जिस कोई देश था ? चलिये इस परिकल्पना को आंकडो के परिपेक्ष मैं समझैं ! गूगल से लिए गए आंकड़ों के अनुसार
भारत की वर्तमान जनसँख्या लगभग 1,22,64,53,875 है जिसमें हिन्दू, 80.5% अर्थात 99,52,57,428 हैं ! मुसलमान 13.4 प्रतिशत अर्थात 16,56,70,181 तथा अन्य की जनसँख्या 5.3 प्रतिशत अर्थात 6,55,26,266 है ! अभी तक भारत एक धर्म निरपेक्ष राज्य है साथ मैं जनतंत्र भी है ! लोकतंत्र में बहुमत या आम सहमति से फैसले होते हैं ! अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि हिन्दू राष्ट्र की रूप रेखा क्या होगी ? जब तक हिन्दू राष्ट्र की स्पष्ट व्याख्या नहीं होती है तब तक यह मुद्दा हवा में यदा कदा उछलता ही रहेगा ! इससे प्रेम भाव नहीं बढ़ेगा ! इसलिए सर्व प्रथम मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ को हिन्दू राष्ट्र की रूप रेखा की स्पष्ट व्याख्या करनी चाहिए !
अखंड भारत !
भारत, पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, म्यानमार (बर्मा), तिब्बत , अफगानिस्तान, बंगलादेश आदि को मिलाकर अखण्ड भारत का निर्माण हो ! यह है अखण्ड भारत की परिकल्पना ! ज्ञान्तव्य हो इस परकल्पित अखण्ड भारत की कुल जनसंख्या 1,72.94,89,661 हो सकती है ! इसमैं 63% हिन्दू है ; 32% मुस्लिम हैं तथा 5% बौद्ध आदि है ! इस सम्बन्ध मैं इन सब देशों की जनसंख्या का विवरण नीचे दिये गया है ! यह आंकडे इंटरनेट से लिये गए है ! लिंक नीचे दिया गया है !
हिंदू…63%; मुस्लिम…32%; बौद्ध …5%
क्या इससे हिंदू समाज को फायदा होगा ? क्या राम राज्य का सपना साकार करने का यह एक मार्ग हो सकता है ? क्या यह संभव है ? क्या कभी अखंड भारत जैसा कोई देश था भी ? क्या अखंड भारत की बात कर हम भारत को एक विस्तारवादी देश के रूप मैं तो प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं ? क्या चीन के अंतर्गत है ! क्या चीन तिब्बत को अखंड भारत में शामिल होने की सहमती देगा ? क्या पाकिस्तान, बंगलादेश, अफगानिस्तान प्रस्तावित अखंड भारत में सम्मिलित होना चाहेंगे ? क्या हमैं इनका समर्थन करना चाहिये ? यह आप पर निर्भर है की स्वयं सोचैं कि क्या यह सम्भव है ? इसलिए आवश्यकीय है अखंड भारत की परिकल्पना स्पष्ट करने हेतु कार्य किया जाय ! हमें इस कार्य से यस मिले अपयस नहीं ! यही मेरी कामना है !
संभावित अखंड भारत की जनसंख्या के आंकड़े अध्ययन हेतु प्रस्तुत हैं !
India…………………………..1,06,55,94,600……… ( 1,24,77,70,000(-) 18,21,75,400 Muslims)
Nepal………................. 2,64,94,504………….. 1,09,20,89,104….. Hindu Population
Indian Muslims …………......18,21,75,400
Afghanistan…………………….. 2,60,23,100
Pakistan………………………….18,80,20,000
Bangladesh……………..15,67,71,000…………….. 55,29,89,500……Muslim Population.
Burma (Mynamar)……….6,03,80,000
Sri Lanka………………….2,02,77,597
Bhutan ……………………….7,50,460
Tibet………………………. 30,03,000 ………………….8,44,11,057…… Bauddh
Grand Total : 1,72.94,89,661…………Total population of perceived Akhand Bharat

कब और कैसे बनेंगे हम विश्व गुरु ? - आत्म मंथन ! How India would become World Teacher !

कब और कैसे बनेंगे हम विश्व गुरु ? - आत्म मंथन !
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वर्ष का इतिहास खंगालने पर पता चलता है , कि आधुनिक विश्व मतलब 1800 के बाद , जो दुनिया मे तरक़्क़ी हुई , उसमें पश्चिमी मुल्को यानी सिर्फ *यहूदी और ईसाई* लोगो का ही हाथ है ! *हिन्दूओं* का इस विकास मे 1% का भी योगदान नही है !
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आप देखिये के 1800 से लेकर 1940 तक *हिंदू और मुसलमान* सिर्फ बादशाहत या गद्दी के लिये लड़ते रहे !
अगर आप दुनिया के *100 बड़े वैज्ञानिको* के नाम लिखें , तो बस *एक या दो नाम हिन्दू के मिलेंगे !
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पूरी दुनिया मे *61 इस्लामी मुल्क* है , जिनकी जनसंख्या *1.50 अरब* के करीब है और कुल *435 यूनिवर्सिटी* है !
दूसरी तरफ *हिन्दू की जनसंख्या 1.26 अरब* के क़रीब है और *385 यूनिवर्सिटी* है !
जबकि *अमेरिका* मे 3 हज़ार से अधिक और *जापान* मे 900 से अधिक *यूनिवर्सिटी* है !
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ईसाई* दुनिया के *45% नौजवान यूनिवर्सिटी* तक पहुंचते हैं ! वहीं * हिन्दू नौजवान 8 %* मुसलमान नौजवान 2%*तक *यूनिवर्सिटी* तक पहुंचते हैं !
दुनिया के *200 बड़ी यूनिवर्सिटी* मे से *54 अमेरिका , 24 इंग्लेंड , 17 ऑस्ट्रेलिया , 10 चीन , 10 जापान , 10 हॉलॅंड , 9 फ़्राँस , 8 जर्मनी , 2 भारत और 1 इस्लामी मुल्क* में हैं !
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अब हम आर्थिक रूप से देखते है !
*अमेरिका* का *जी. डी. पी 14.9 ट्रिलियन डॉलर* है !
जबकि पूरे *इस्लामिक मुल्क* का कुल *जी. डी. पी 3.5 ट्रिलियन डॉलर* है ! वहीं *भारत का 1.87 ट्रिलियन डॉलर* है ! 
दुनिया मे इस समय *38,000 मल्टिनॅशनल कम्पनियाँ* हैं ! इनमे से *32000 कम्पनियाँ* सिर्फ *अमेरिका* और *युरोप* में हैं !
अब तक दुनिया के *15,000 बड़े अविष्कारों* मे *6103 अविष्कार* अकेले *अमेरिका* में और *8410 अविष्कार ईसाइयों या यहूदियों* ने किये हैं !
दुनिया के *50 अमीरो* में *20 अमेरिका* , *5 इंग्लेंड* , *3 चीन* , *2 मक्सिको* , *2 भारत* और *1 अरब मुल्क* से हैं !
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अब आपको बताते है , कि हम *हिन्दू जनहित , परोपकार या समाज सेवा* मे भी *ईसाईयों और यहूदियों से पीछे* हैं ! *रेडक्रॉस दुनिया* का सब से *बड़ा मानवीय संगठन* है , इस के बारे मे बताने की जरूरत नहीं है !
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बिल गेट्स ने *10 बिलियन डॉलर* से *बिल- मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन* की बुनियाद रखी , जो कि पूरे *विश्व के 8 करोड़ बच्चो* की सेहत का ख्याल रखती है !
जबकि हम जानते है , कि भारत में कई अरबपति हैं !
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मुकेश अंबानी* अपना घर बनाने मे 4000 करोड़ खर्च कर सकते हैं और *अरब का अमीर शहज़ादा* अपने स्पेशल जहाज पर 500 मिलियन डॉलर खर्च कर सकते हैं ! मगर *मानवीय सहायता* के लिये दोनों ही आगे नही आ सकते हैं !
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यह भी जान लीजिये की *ओलंपिक खेलों* में *अमेरिका* ही सब से *अधिक गोल्ड* जीतता है , हम खेलो में भी आगे नहीं !
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हम अपने अतीत पर गर्व तो कर सकते हे , किन्तु व्यवहार से स्वार्थी ही है ! आपस में लड़ने पर अधिक विश्वास रखते हैं !*
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मानसिक रूप में आज भी हम विदेशी व्यक्ति से अधिक प्रवाभित हैं ! अपनी संस्कृति को छोड़ कर , विदेशी संस्कृति अधिक अपनाते हैं !* इन परिस्थितियों कब और कैसे बनेंगे हम विश्व गुरु ?

विश्व गुरु की अवधारणा क्या है ! पिछले 250 साल के इतिहास में पाश्च्यात्य देशों ने बहुत से आविष्कार किये और जनमानस के लिए कल्याणकारी कार्य भी किये ! हम पीछे रह गये क्योंकि हम गुलाम थे और गरीब बने रहे ! पर इस सबके बावजूद पाश्च्यात देश विश्व गुरु के पद को कभी न पा सके l शायद उन्हें इसकी चाह भी नहीं थी ! भारत की विश्गुरु बनने की चाह को इसलिए मान्यता मिलती है क्योंकि उपर्युक्त काल खंड से पहले हमारे पास यह सब कुछ था ! आध्यात्मिक ज्ञान था ! भारत ने संसार को शांतिपूर्ण सहस्तित्व का सन्देश दिया ! भारत वसुधैव कुटुम्बकम् में विश्वास करता है ! भारत के ऋषि मुनि जन्म-म्रत्यु के जंजाल (पुनरपि जन्मम, पुनरति मरणं) से मुक्ति एवं मोक्ष का सन्देश देते है ! भारत शांति प्रेम और भाई चारे का सन्देश देता है ! भारत सभी धर्मों के प्रति प्रेम और भाई चारे की बात करता है ! भारत अथिति देवोभव की बात करता है ! भारत सत्य मेव जयते की बात करता है ! परन्तु एक बात यह भी सच है मनुष्य किसी भी व्यक्ति या समाज से तब ही प्रभावित होता है जब वह व्यक्ति या समाज प्रभावशाली हो ! आज पाश्च्यात्य देशों का डंका क्यों बजता है क्योंकि वह प्रभावशाली हैं या उनसे लोगों को फ़ायदा है ! यदि भारत आर्थिक शक्ति बने, सैन्य शक्ति से भरपूर हो और जहां डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती हो बसेरा, वो भारत देश है मेरा, इस उंचाई पर पहुँच सकें तभी हमारे ज्ञान को हमारे आध्यात्म को पूरी दुनिया समझेगी और मानेगी ! इस विषय में शुरूवात तो हो चुकी है ! योग को अन्तराष्ट्रीय जगत मैं मान्यता मिलना एक बड़ा कदम कहा जा सकता है ! आज दुनियां आध्यात्म को स्वीकार करती है ! पर यदि हम भारत को शीघ्रातिशीघ्र शक्तिशाली पर शांतिपूर्ण देश न बना सके तो यह सब कैसे होगा ? समय की आवश्यक है हम मिल कर रहने की कला सीखें ! यही भारत के कल्याण की कुंजी है !
ये चौथा खम्बा क्या है भाई ? और आया कहाँ से ?
भारतीय संविधान के अनुसार सरकार के तीन स्तम्भ हैं कार्यपालिका, न्यायपालिका व विधायिका ! पर मीडिया ने इन तीन स्तंभों के बीच मीडिया ने नारद मुनि की तरह ऐसी सेंध लगाईं कि मीडिया बन गया चौथा स्तम्भ जिसे लोग चौथा खम्बा कहलाना बेहतर समझते हैं ! समझ में नहीं आया यह चौथा खम्बा कहाँ से और कैसे आया ? इस खम्बे ने सरकारों पर ऐसा कहर ढाया है कि सरकारें इसके प्रकोप से थर थर कांपती हैं ! इस चौथे खम्बे का कहर देखना है तो देखिये टेलीविज़न के छोटे परदे पर ! एक अदना सा एंकर छोटे परदे में शहंशाह बन, बड़े से बड़े नेता नेता की वाट लगा देता है ! जब वह किसी भी नेता को हड़काता है तो नेता जी की कैसी घिघ्घी बंध जाती है ! यह आपने भी महसूस किया होगा ! जब एंकर टेलीविज़न पर अपना जलवा दिखाते हैं तो लगता है जैसे संसार के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति वह ही हों, जैसे सारी ईमानदारी और निष्पक्ष होने का ठेका उन्होंने ही लिया हो ! सरकारों को राज काज चलाने की ट्रेनिंग वह ऐसे देते हैं जैसे पता नहीं कितनी सरकारें उन्होंने चलाई हों ! वह स्वयं को सर्वगुण संपन्न एवं सर्वश्रेष्ठ मानते हुए नेताओं के ऊपर ऐसे हावी होने का प्रयास करते हैं कि नेता जी बगलें भी नहीं झाँक पाते ! क्योंकि नेता जी स्वयं को एंकर से दोयम कैसे समझ सकते हैं ? एंकर नेताओं को तमीज सीखने की भी ट्रेनिंग देता है ! वह दुनियाँ के हर नेता को भ्रस्टाचारी एवं स्वयं को सदाचारी घोषित कर छोटे परदे के बाहुबली का बखूबी रोल निभाने मैं पटु होता है ! एंकरों की भी दो प्रजाति होती हैं ! पुरूष और महिला ! पुरुष को तो नेता किसी तरह झेल ही लेता है परन्तु महिला एंकर नेता जी की ऐसी घिग्घी बंधाती हैं कि नेता जी बगलें ही झांकते रह जाते हैं ! एंकरों की वाणी में अहंकार की तुलना कैसे करूं ? समझ लीजिये जैसे आसमान में बिजली चमकती है वैसे ही एंकर महोदय या महोदया की गर्जना अपनी चमक की धमक छोटे परदे पर यदा कदा दीखती रहती हैं ! नेता जी को उनका मुहं (माइक) बंद करने की धमकी इस चमक में उनका ब्रह्मास्त्र होता है ! इस अस्त्र के बाद तो नेताजी त्राहिमाम के तर्ज पर अपना मुहं ही सिल लेते है ! पर एंकर का सत्ता पक्ष के पेनलिस्ट की तरफ नजरिया कुछ भिन्न होता है ! उन्हें एंकरों की तरफ से कुछ सम्मान मिल जाता है ! पर टीवी स्टूडियो के बाहर एंकरों की की चमक-धमक काफी हद तक रफू चक्कर हो चुकी होती है ! विरोधी कब सत्ता पक्ष बन जाए क्या पता ? इस बात का वह बखूबी ध्यान रखते हुए चौथे खम्बे की धमक बरक़रार रखने का प्रयास करते दीखते हैं ! नेता या पेनालिस्ट्स की जवान पकड़ कर वह मुद्दा लपक लेते है ! कभी मुद्दा शराब है तो कभी गोस्त, कभी मुद्दा सांप है तो कभी चूहा ! एक बार हम भी इनके चक्कर में फंसे ! एक कार चल रही थी बिन ड्राईवर के और सुबह से शाम तक कर चलती रही ! देर शाम पर्दाफ़ाश हुवा कि पिछली सीट से वह कार चलाई जा रही थी ! किसी के थप्पड़ लगे या न लगे ! पर एंकर महोदय चिल्लायेंगे - तगड़ा लगा थप्पड़ नेता जी के गाल पर ! इसी बात पर कुछ पेनलिस्ट बैठाए जायेंगे ! और प्रश्न होगा - क्या किसी नेता को सरे बाजार महफ़िल में थप्पड़ लगाना वाजिब है, क्या थप्पड़ लगा कि नहीं ? धुंवाधार वाद विवाद चलता है और अंत में सभ्य समाज के इस पेनल में थप्पड़ को असभ्यता घोषित कर दिया जाता है ! और सबसे अंत में एंकर महोदय हर पेनलिस्ट को 30 सेकंड में, केवल 30 सेकंड में उत्तर देने का दादागिरी वाला फरमान सुनाते हैं और सारे नेता उसे हेडमास्टर का फरमान सुन अपनी बारी का इंतज़ार करते लगते है ! उसमें भी कभी कभी सबके बोलने से पहले चैनल बदल दी जाती है ! जिनको मौका मिलता है यदि वह विरोधी पक्ष का ही तो पेनलिस्ट महोदय कहेंगे झापड़ तो पड़ा ही नहीं, केवल प्रयास किया गया ! पर इस प्रयास की वह भर्त्सना करते हैं और सता पक्ष के नेता भी इसकी भर्त्सना करेंगे पर झापड़ पड़ा या नहीं इस मुद्दे को गोल कर जायेंगे और वाद विवाद का समापन हो जाएगा ! और कुछ पेनालिस्ट दूसरे चैनल में किसी अन्य विषय पर अपनी एक्सपर्ट राय देने हेतु प्रस्थान कर जायेंगे ! (This is a piece of humour !)

सोमवार, 30 सितंबर 2013

Save India Family (SIF ) Movement

SIF (Save Indian Family) movement.

We are in an era of Media Trial. Media have been highlighting the Women’s point of view in a big way and Men are shouted down when they try to put their point of view in any TV debate. The Anchor in such cases is mostly a Lady, who poses to be a votary to the cause of women. Damini gang rape, no doubt, was a horrific and barbarous act and every one - men and women alike- voiced their feeling to demand Capital punishment for the culprits. Men supported women in every way. India is a democratic country. In a democracy the other person’s point of view is equally important. This is the reason the Court gave a patient hearing to the Lawyers of the accused and after granting full opportunity to both the sides to put up their case without fear the Court pronounced Capital punishment to the all the accused. Thus justice was done to Damini. The juvenile accused however got 3 years in ‘Bal Sundhar Grih’ (Reform facility), which was the maximum punishment for a juvenile as per the law of the land, which everybody felt was a small punishment for such a dastardly act by the juvenile.

The Men’s voice was echoed by the son of the President of India’s Abhijit Mukherjee, M.P. who spoke to the Media echoing Men’s sentiments, which were harshly condemned by the Women’s Organisations and he was made to eat his own words. His unconditional apologies only could console the Women’s organisations. But by this time he had spoken what he wanted to speak. The message had been flashed through the Media to every corner of the country and the people, men and women alike were saying that he had spoken the truth, but nobody dared to speak against the Women’s Organisations in the Media. Certain things men cannot digest, for example Women’s Organisations want Legal and social acceptance of pre-marital rape. They also demand liberty to women to walk down the streets of the cities in late night as well, as is allowed to the males. They demanded that it is the duty of Sheila Dixit Government to provide security to the women walking in the streets of Delhi at the dead of night.  They tacitly advocate acceptance of western culture, but they forget that in Western Countries when the boys and girls attain majority, they are expected to lead their lives independently without any thing to do with the parents. But in India, even today, it is the solemn religious and moral duty of the parents, in view of massive attachment with the children, to arrange and fully finance the marriage of their son and daughters and prior to that fully finance and arrange for their higher education even when they have become adult and also to try for their proper employment. In return children are not ready to accept the responsibility of looking after their old and ailing parents. They prefer being nearer to their in-laws, because wives’ want greater association with their parents. Thus instead of looking after the husband’s parents, they prefer to look after their parents. If Women Organisations want social acceptance of pre-marital sex, they should also ask the children to leave their parent’s home, after attaining the age of majority, so that the money which the parents spend in their marriage and higher studies becomes a good source of their livelihood in their old age.

Sometimes back I was watching a TV debate about Damini gang rape, in which a male Panelist said that in Delhi rape cases are increasing. The reason is mostly liquor. Hence something should be done to prohibit selling of liquor in the evening as the rape cases normally take place after intoxication. Two Women Panelists resented vociferously and made the Men Penalist to shut their mouths. The Lady Anchor hastily ignored this all and switched over to other Panelists.  Awindra Pandey, friend of Damini who tried to save her from the culprits was also ignored by the Women’s Organisations. Is it that because he was a man?

In Damini case, the then Chief Justice of India Justice Altamas Kabir said that if he had his say he would have gone to raise his voice in the then ongoing agitation against Damini rape. Woman Organisations would have taken a note of it. It is therefore crystal clear that Men are equally worried about what is happening with the women in our society. Everybody including Women Organisations feel that it is the parents who can give moral education and ‘sanskar’ to their children. But they forget that today the children are not under the control of their parents. The boys demand a Mobile at the age 3 to 5 years and a Bike at the age of 10 years. Girls say that their parents are doing partiality with them and now they also demand a Mobile and Scooty at a tender age. The parents are helpless. In case their demand is not met, they would boycott food and threaten to commit suicide. So parents somehow arrange for the money and give them what they want. In some cases the children become a prey to the Bike accidents and leave their parents to weep and repent throughout their life.

Now Rajya Sabha has passed a Bill in which provision has been made to grant inheritance right in the parental property of the husbands. Now the girls will get property from three sources i.e. their father, husband and father-in-law. But they forget normally husband’s purchase property in the name of their wives. They also hand over their full salary or income to their wives and beg money from their wives, from time to time, for their personal needs.  Now they will be scared and would think hundred times before handing over their full salary to them or purchasing property in the name of their wives. Women Organisations feel that pre-marital sex, divorce, Maintenance allowance etc. should be allowed to the women as a matter of right for which Laws have already been framed. But they forget that boys are badly being harassed, simply because they are males. Hence the latest alternative which boys are brooding over is Live-in-relationship, which is already in vogue in metros. Marrying a girl means you are bringing a ‘live time-bomb’ which may explode any time, because now a Lady can lodge an FIR from her husband’s house through internet or mobile phones as well. They are not required even to go to a Police Station. Their simple information through internet etc. would authorise the Police to arrest the husband pending investigation. Women’s Organisations also want Marital Rape as an offence. This all is hitting at the very root of family system. They want a still more strict Section 498-A and Dowry Act. They lament in such cases the conviction rate is only 2%. The fact is most of the cases lodged against husbands are false. Naturally the conviction rate has to be 2% or so. The Supreme Court took a notice of it and termed this as ‘legal terrorism’. The woman organisations are not ready to accept the men’s view point. As a result of FIR by his wife a husband who had to go to Jail and consequently gets bail prefers to lead a lonely life, instead of accepting the lady to lead a marital life afresh. Not only that he prefers to go to Jail even if found guilty instead of bringing the lady, who is once again gets armed with all sort of anti-men laws, if she is back to her husband’s home. Thus the family system gets shattered. The girl also repents because normally she finds no prospects of re-marriage in the present Indian society. But it is already too late. By this time her age also grows, hence the chances of re-marriage diminish further. The Women Organisations should think seriously as to how to save the Indian Families. They should call SIF activists and hear their point of view. We all agree that in rape cases, particularly in children rape cases and gang rape cases capital punishment is a must, but in all other cases we must think in terms of how the Indian Family System can be saved and in case Women’s Organisations do not agree to this, divorce should become easier, Section 498-A and Dowry Act like anti-men provisions should be out of the Statute or should be diluted. These organisations should not be allowed to cook the cake and eat it too. It is pertinent to mention that all Men are not rapists. It is the Men who look after the women and do all sort of sacrifices for them. They have great regard and affection for the woman. The women, being kind hearted, respond to the Men in every way. The fact is there is no existence of men without women and there is no existence of women without men. Women Organisation should not make this matter ‘Men versus Women’. They should not shout down or overpower men while speaking in a debate as a Panelist. Women organisations should talk about all the rape cases which are brought to them by the people or Media. A Police Lady Constable was raped in Jharkhand in August last, while she was bringing the dead body of his relative from Ranchi to Latehar about which there was not a single word from the Women Organisations, why? The topic of the day is how to save Indian families? SIF (Save Indian Family) a man’s organisation is doing good work in this direction. The Government and the woman organisations should also take them into confidence.  The Government should also consider whether time is ripe when a ‘Purush Ayog’ should also be established to look after the grievances of men who suffer at the hands of woman? This will go a long way in saving Indian Families. 

D.N.Barola, President, Press Club, Ranikhet. e-mail dnbarola@yahoo.co.in                                                 Mobile No.9412909980,05966220259


शुक्रवार, 18 जुलाई 2008

GIRAA – Kumaun ki haakee

गिरा – कुमाओं की हॉकी

हॉकी भारत का गौरव हुवा करती थी. ध्यान चाँद को हॉकी का जादूगर कहा जाता था. आज हाकी की दुर्दशा हो चुकी है. आंखिर हॉकी की इश दसा के लिए कौन जिम्मेदार है? पहले हॉकी घर घर मैं खेली जाती थी. रानीखेत के गावों मैं हॉकी खेलने का अलग अंदाज़ था’ हॉकी बनाने के लिए पेड़ की ऐसी टहनी को काटा जाता था जो छड़ी की आकार की हो. यह उल्टी लाठी के समान होती थी. इसे हॉकी के रूप मैं प्रयोग मैं लाया जाता था. घिंघारू की जड़ की हॉकी उत्तम मानी जाती थी. कपड़े की सिलाई कर उसे बौल का स्वरुप दिया जाता था. कुछ लोग बांस की जड़ की बाल बनाते थे. उत्तरायनी के दिन मकर संक्रांति को इसका फाइनल खेला जाता था. विजेता को इनाम मिलता था. खेल समाप्ति के बाद बौल तथा हॉकी को फैंक दिया जाता था. मान्यता थी की ऐसा न करने वाले को पित्त रोग हो जायेगा. मैदान कितना बड़ा या छोटा हो इसकी सीमा नहीं थी. खिलाडियोँ की भी सीमा नहीं थी. १०-१२ या ७-८ लोग गिरा का खेल खेलते थे . आज भी गिरा का मेला चनुली सरपट मन्दिर जो के घट्टी के पास है, चमर्खान के मेले के समापन के दिन गिरी का खेल खेला जाता है. इसके पश्चात् बसंत पंचमी तक गिल्ली डंडा खेला जाता है .

एक और खेल जो गिरा की ही तरह होता था उसका नाम है सिमंटाई या सत्पत्थारी. इसमें सात पत्थरों से विकिट बनाया जाता था. कपड़े की बौल से विकेट गिराना होता था. विकेट कीपर ही खिलाड़ी को बौल मारकर आउट करता था. आज से सब खेल लगभग समाप्त हो चुके हैं. यदि हांकी को पुनर्जीवित करना है तो इन खेलों को भी पुनर्जीवित करना होगा. (रमेश चन्द्र tiwari की मदद से यह लेख लिखा गया है)

शुक्रवार, 27 जून 2008

dekho mayray baadshaho ki hum kya kar देखने की बात यह है की वह क्या कर सकता है