शुक्रवार, 18 जुलाई 2008

GIRAA – Kumaun ki haakee

गिरा – कुमाओं की हॉकी

हॉकी भारत का गौरव हुवा करती थी. ध्यान चाँद को हॉकी का जादूगर कहा जाता था. आज हाकी की दुर्दशा हो चुकी है. आंखिर हॉकी की इश दसा के लिए कौन जिम्मेदार है? पहले हॉकी घर घर मैं खेली जाती थी. रानीखेत के गावों मैं हॉकी खेलने का अलग अंदाज़ था’ हॉकी बनाने के लिए पेड़ की ऐसी टहनी को काटा जाता था जो छड़ी की आकार की हो. यह उल्टी लाठी के समान होती थी. इसे हॉकी के रूप मैं प्रयोग मैं लाया जाता था. घिंघारू की जड़ की हॉकी उत्तम मानी जाती थी. कपड़े की सिलाई कर उसे बौल का स्वरुप दिया जाता था. कुछ लोग बांस की जड़ की बाल बनाते थे. उत्तरायनी के दिन मकर संक्रांति को इसका फाइनल खेला जाता था. विजेता को इनाम मिलता था. खेल समाप्ति के बाद बौल तथा हॉकी को फैंक दिया जाता था. मान्यता थी की ऐसा न करने वाले को पित्त रोग हो जायेगा. मैदान कितना बड़ा या छोटा हो इसकी सीमा नहीं थी. खिलाडियोँ की भी सीमा नहीं थी. १०-१२ या ७-८ लोग गिरा का खेल खेलते थे . आज भी गिरा का मेला चनुली सरपट मन्दिर जो के घट्टी के पास है, चमर्खान के मेले के समापन के दिन गिरी का खेल खेला जाता है. इसके पश्चात् बसंत पंचमी तक गिल्ली डंडा खेला जाता है .

एक और खेल जो गिरा की ही तरह होता था उसका नाम है सिमंटाई या सत्पत्थारी. इसमें सात पत्थरों से विकिट बनाया जाता था. कपड़े की बौल से विकेट गिराना होता था. विकेट कीपर ही खिलाड़ी को बौल मारकर आउट करता था. आज से सब खेल लगभग समाप्त हो चुके हैं. यदि हांकी को पुनर्जीवित करना है तो इन खेलों को भी पुनर्जीवित करना होगा. (रमेश चन्द्र tiwari की मदद से यह लेख लिखा गया है)